..  संत कबीर भजन संग्रह ..


Introduction to Sant Kabir

 Kabirdas, a great devotee, was greatly attracted to the Hindu spiritual 
tradition though by birth he was not one and was drawn to saint Ramananda, 
whom he recognised as his Guru. Every day he used to stand outside the 
gates of the saint's Ashram since he could not muster enough courage 
to enter the premises with the fond hope that his presence would be 
noticed by his disciples who would convey the matter to the saint. 

Days rolled on and his wish remained unfulfilled. At last God Himself
decided to intercede. The saint while going out for his bath overheard the
idols of Rama and Lakshmana in his worship speaking to one another, to
the effect that they should leave the Ashram because a great devotee had
not been welcomed there. 

The saint who was not aware of Kabir's daily visit to his Ashram found him
weeping on the banks of the river and in the darkness of the morning hour
stumbled on him and invountarily utterred ``Rama''. Kabir fell prostrate at
his feet in gratitude for he received this utterance as his initiation and the
touch of his Guru's feet as the greatest blessing and became a great saint in
due course. Such was his devotion and faith. 

From 'Religion' brief of 'The Hindu' 'Devotion alone matters to God' dated December 29, 1997



करम गति टारै
करम गति टारै नाहिं टरी .. टेक..

मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि .
सीता हरन मरन दसरथ को, बनमें बिपति परी .. १..

कहॅं वह फन्द कहाॅं वह पारधि, कहॅं वह मिरग चरी .
कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि .. २..

पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी .
कहत कबीर सुनो भै साधो, होने होके रही .. ३..

रे दिल गाफिल
रे दिल गाफिल गफलत मत कर, 
     एक दिना जम आवेगा .. टेक..

सौदा करने या जग आया, 
     पूॅंजी लाया, मूल गॅंवाया, 
प्रेमनगर का अन्त न पाया, 
     ज्यों आया त्यों जावेगा .. १..

सुन मेरे साजन, सुन मेरे मीता, 
     या जीवन में क्या क्या कीता, 
सिर पाहन का बोझा लीता, 
     आगे कौन छुडावेगा .. २..

परलि पार तेरा मीता खडिया, 
     उस मिलने का ध्यान न धरिया, 
टूटी नाव उपर जा बैठा, 
     गाफिल गोता खावेगा .. ३..

दास कबीर कहै समुझाई, 
     अन्त समय तेरा कौन सहाई, 
चला अकेला संग न कोई, 
     कीया अपना पावेगा .. ४..

झीनी झीनी बीनी चदरिया
झीनी झीनी बीनी चदरिया .. टेक..

काहे कै ताना काहे कै भरनी, 
      कौन तार से बीनी चदरिया .. १..

इडा पिङ्गला ताना भरनी, 
      सुखमन तार से बीनी चदरिया .. २..

आठ कँवल दल चरखा डोलै, 
      पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया .. ३..

साँ को सियत मास दस लागे, 
      ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया .. ४..

सो चादर सुर नर मुनि ओढी, 
      ओढि कै मैली कीनी चदरिया .. ५..

दास कबीर जतन करि ओढी, 
      ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया .. ६..

दिवाने मन
दिवाने मन, भजन बिना दुख पैहौ  .. टेक..

पहिला जनम भूत का पै हौ, सात जनम पछिताहौउ .
काॅंटा पर का पानी पैहौ, प्यासन ही मरि जैहौ .. १..

दूजा जनम सुवा का पैहौ, बाग बसेरा लैहौ .
टूटे पंख मॅंडराने अधफड प्रान गॅंवैहौ .. २..

बाजीगर के बानर होइ हौ, लकडिन नाच नचैहौ .
ऊॅंच नीच से हाय पसरि हौ, माॅंगे भीख न पैहौ .. ३..

तेली के घर बैला होइहौ, आॅंखिन ढाॅंपि ढॅंपैहौउ . 
कोस पचास घरै माॅं चलिहौ, बाहर होन न पैहौ .. ४..

पॅंचवा जनम ऊॅंट का पैहौ, बिन तोलन बोझ लदैहौ .
बैठे से तो उठन न पैहौ, खुरच खुरच मरि जैहौ .. ५..

धोबी घर गदहा होइहौ, कटी घास नहिं पैंहौ .
लदी लादि आपु चढि बैठे, लै घटे पहुॅंचैंहौ .. ६..

पंछिन माॅं तो कौवा होइहौ, करर करर गुहरैहौ .
उडि के जय बैठि मैले थल, गहिरे चोंच लगैहौ .. ७..

सत्तनाम की हेर न करिहौ, मन ही मन पछितैहौउ .
कहै कबीर सुनो भै साधो, नरक नसेनी पैहौ .. ८..

केहि समुझावौ
केहि समुझावौ सब जग अन्धा .. टेक..

इक दुइ होयॅं उन्हैं समुझावौं, 
सबहि भुलाने पेटके धन्धा .
पानी घोड पवन असवरवा, 
ढरकि परै जस ओसक बुन्दा .. १..
गहिरी नदी अगम बहै धरवा, 
खेवन- हार के पडिगा फन्दा .
घर की वस्तु नजर नहि आवत, 
दियना बारिके ढूॅंढत अन्धा .. २..
लागी आगि सबै बन जरिगा, 
बिन गुरुज्ञान भटकिगा बन्दा .
कहै कबीर सुनो भाई साधो, 
जाय लिङ्गोटी झारि के बन्दा .. ३..

बहुरि नहिं
बहुरि नहिं आवना या देस .. टेक..

जो जो गए बहुरि नहि आए, पठवत नाहिं सॅंस .. १..
सुर नर मुनि अरु पीर औलिया, देवी देव गनेस .. २..
धरि धरि जनम सबै भरमे हैं ब्रह्मा विष्णु महेस .. ३..
जोगी जङ्गम औ संन्यासी, दीगंबर दरवेस .. ४..
चुंडित, मुंडित पंडित लोई, सरग रसातल सेस .. ५..
ज्ञानी, गुनी, चतुर अरु कविता, राजा रंक नरेस .. ६..
कोइ राम कोइ रहिम बखानै, कोइ कहै आदेस .. ७..
नाना भेष बनाय सबै मिलि ढूऊंढि फिरें चहुॅं देस .. ८..
कहै कबीर अंत ना पैहो, बिन सतगुरु उपदेश .. ९..

मन लाग्यो मेरो यार
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

जो सुख पाऊँ राम भजन में 
सो सुख नाहिं अमीरी में 
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

भला बुरा सब का सुनलीजै
कर गुजरान गरीबी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

आखिर यह तन छार मिलेगा
कहाँ फिरत मग़रूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

प्रेम नगर में रहनी हमारी
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

कहत कबीर सुनो भयी साधो
साहिब मिले सबूरी में
मन लाग्यो मेरो यार फ़कीरी में ..

भजो रे भैया
भजो रे भैया राम गोविंद हरी .
राम गोविंद हरी भजो रे भैया राम गोविंद हरी ..

जप तप साधन नहिं कछु लागत, खरचत नहिं गठरी ..
संतत संपत सुख के कारन, जासे भूल परी ..
कहत कबीर राम नहीं जा मुख, ता मुख धूल भरी ..

बीत गये दिन
बीत गये दिन भजन बिना रे . 
भजन बिना रे, भजन बिना रे .. 

बाल अवस्था खेल गवांयो .
जब यौवन तब मान घना रे ..

लाहे कारण मूल गवाँयो .
अजहुं न गयी मन की तृष्णा रे ..

कहत कबीर सुनो भई साधो .
पार उतर गये संत जना रे ..

नैया पड़ी मंझधार
नैया पड़ी मंझधार गुरु बिन कैसे लागे पार ..

साहिब तुम मत भूलियो लाख लो भूलग जाये .
हम से तुमरे और हैं तुम सा हमरा नाहिं .
अंतरयामी एक तुम आतम के आधार .
जो तुम छोड़ो हाथ प्रभुजी कौन उतारे पार ..
गुरु बिन कैसे लागे पार ..

मैं अपराधी जन्म को मन में भरा विकार .
तुम दाता दुख भंजन मेरी करो सम्हार .
अवगुन दास कबीर के बहुत गरीब निवाज़ .
जो मैं पूत कपूत हूं कहौं पिता की लाज ..
गुरु बिन कैसे लागे पार ..

तूने रात गँवायी
तूने रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय के .
हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय ..

सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल रे .
बाहर का पट बंद कर ले अंतर का पट खोल रे .
माला फेरत जुग हुआ गया ना मन का फेर रे .
गया ना मन का फेर रे .
हाथ का मनका छाँड़ि दे मन का मनका फेर ..

दुख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोय रे .
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काहे को होय रे .
सुख में सुमिरन ना किया दुख में करता याद रे .
दुख में करता याद रे .
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फ़रियाद ..

राम बिनु
राम बिनु तन को ताप न जाई .
जल में अगन रही अधिकाई ..
राम बिनु तन को ताप न जाई ..

तुम जलनिधि मैं जलकर मीना .
जल में रहहि जलहि बिनु जीना ..
राम बिनु तन को ताप न जाई ..

तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा .
दरसन देहु भाग बड़ मोरा ..
राम बिनु तन को ताप न जाई ..

तुम सद्गुरु मैं प्रीतम चेला .
कहै कबीर राम रमूं अकेला ..
राम बिनु तन को ताप न जाई ..

shree shree@yahoo.com